Saturday, August 20, 2011

सिंहासन खली करो के जानता आती है

"सदियों की ठंडी बुझी राख़ सुगबुगा उठी! 
मिटटी सोने का ताज पहन इठलाती है!
दो राह समय के रथ का घर्घर नाद सुनो!...
सिंहासन खली करो के जानता आती है...."....

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