"सदियों की ठंडी बुझी राख़ सुगबुगा उठी!
मिटटी सोने का ताज पहन इठलाती है!
दो राह समय के रथ का घर्घर नाद सुनो!...
सिंहासन खली करो के जानता आती है...."....
मिटटी सोने का ताज पहन इठलाती है!
दो राह समय के रथ का घर्घर नाद सुनो!...
सिंहासन खली करो के जानता आती है...."....
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